स्व. ओमप्रभा गुप्ता जी
सचिव
प्रिय भाइयो एवं बहनों,
राम राम।
मेरी आंतरिक भावना रही है कि किसी के दुःख दर्द बांटने में शारीरिक श्रम, सुझाव, मनोबल एवं अपनी सामर्थ्य के अनुसार सहयोग जो भी बन पड़े जरूर करना चाहिए।
प्राचीन स्त्री-तत्वों के अनुसार यदि स्त्री का नाम रोशन हो तो संतान का कर्तव्य होता है। लेकिन मेरे पिता स्वर्गीय रामसरन पूज्य पिताजी, बाल्मिकानंद आश्रम (एटा) निवासी की कोई पुत्री नहीं थी, मैं अपने भाइयों में सबसे बड़ी बहन हूँ जिसे मैं हमेशा ईमानदारी, दृढ़ता, एवं परोपकार जैसे दिखते गुण से सुसज्जित हूँ एवं परमपूज्य पिता के गुणों को आत्मसात किया है।
पिता जी के परोपकार के विचार से मैंने आत्मा से निर्णय लिया कि पिता जी का नाम से एक शिक्षण संस्थान खोला जाये, जिसमें बाल समाजहित हेतु बेटी-बहनों के लिए भी सबसे पहले शिक्षा श्रद्धापूर्वक दी जाये।
आप सभी से अनुरोध है कि आप सभी इस शिक्षण संस्थान में सहयोग करें एवं यह शिक्षण संस्थान आपके सहयोग से उत्तम शिक्षण संस्था बने एवं फलित होकर उत्तम समाज एवं सुख-शांति प्रदायक बने। ऐसा मेरा विचार है।
इसी शुभ कामना और शुभकाननाओं के साथ.....